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Thursday, March 28, 2013

ज़ी टीवी स्टार कैसे मानते है दीवाली प्रेम बाबू शर्मा How Zee TV star admits Diwali Prem Babu Sharma

ज़ी टीवी स्टार कैसे मानते है दीवाली

प्रेम बाबू शर्मा 


रजन राजपूत 
दीवाली लक्ष्मी पूजा, प्रकाश, मिट्टी के दीये पटाखों और जी भरकर मिठाई खाने का उत्सव है। दीवाली को लेकर मेरे बचपन की कई यादें हैं कि हम किस तरह अपनी दीवाली मनाते थे। घर में सबसे छोटी होने के नाते मेरी ये जिम्मेदारी थी कि मैं पूरे घर की सजावट करुँ। पटना में हमारा बहुत बड़ा घर है और मैं मिट्टी के दीयों से सुबह से ही पूरे घर को सजाती थी। लक्ष्मी गणेश पूजा के बाद हम सबसे पहले मिट्टी के दिये जलाकर पटाखे फोड़ते थे। हमारे परिवार मं दीवाली पर पान की परंपरा है और इसी दिन मेरे पिताजी पान रखते थे। जबसे मैं मुंबई आई हूँ, मैं कोशिश करती हूँ कि मैं घर के सभी रीति-रिवाजों का पालन करुँ, यहाँ की दीवाली में बर यही फर्क है कि मैं ये दीवाली अपने परिवार की बजाय दोस्तों के परिवार के साथ मनाती हूँ।


अय्यूब खानः 
मुझे प्रकाश का ये पर्व बहुत पसंद है। साल भर में ये ही वह मौका होता है जब हम अपने परिचितों के साथ मिलकर ये त्यौहार मनाते हैं। इस मौके पर मुझे लोगों क रात भर शराब पीना और ताश खेलना कतई पसंद नहीं। मुझे ये समझ में नहीं आता है कि लोग कोई भी त्यौहार बगैर शराब के क्यों नहीं मनाते हैं।



वंदना जोशीः 
मैं बचपन से ही इस त्यौहार को लेकर बेहद रोमांचित रती आई हूँ। यही वह त्यौहार है जब पूरा परिवार एक साथ इकठ्ठा होता है और उपहारों का आदान-प्रदान होता है। मुझे एक घटना याद है जब हम अपने रिश्तेदारों के यहाँ गए थे, और जब वापस आए तो देखा कि एक रॉकेट से हमरा घर के पर्दे जल गए हैं। ये तो अच्छा हुआ कि खिड़की बंद थी, वर्ना घर में बहुत नुक्सान हो सकता था।




साई रानाडेः 
मेरे लिए तो दीवाली का मतलब है पटाखे, मिठाई, नए कपड़े, रंगोली, कंडील आदि। मैं रंगोली बनाने में अपने भाई बहनों के साथ सक्रियता से भागीदारी करता हूँ। मुझे लगता है कि मेरे अंदर का बच्चा अभी जीवित है और त्यौहार के मौके पर मैं बड़ों जैसा बर्ताव करना कतई पसंद नहीं करता। साल भर में यही वो मौका होता है जब हम तनावरहित होकर मौज मस्ती कर सकते हैं।









जयश्री तलपड़े 
दीवाली हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, जो रावण को मारने के बाद भगवान राम की वापसी की खुशी में मनाया जाता है। बचपन में हम सुबह-सुबह अपने आपको चंदन से मलकर खूब नहाते थे। शाम को पूरे घर को दीयों से सजाते थे और रंगोली बनाते थे। हम दीवाली के दिनअपने रिश्ते के भाईयों से मिलने को उतावले रहते ते, और फिर सब मिलकर पटाखे छोड़ते थे। उत्सव का समय होता ही ऐसा है कि हम अपने सभी परिवार वालों से एक साथ मिलें।








इकबाल खानः 
मेरी पत्नी स्नेहा और मेरे लिए दीवाली बहुत विशेष त्यौहार है। मैं साल भर शूटिंग में व्यस्त रहता हूँ, और मुझे बड़ी मुश्किल से कुछ दिनों की छुट्टी मिलती है। दीवाली के तीन दिन हम घर पर एक साथ बिताते हैं। स्नेहा को घर सजाने का बहुत शौक है और वह पूरा घर दीयों से सजाती है। घर में दीपक की रोशनी और आकाश में पटाखों की सतरंगी बहार देखने में बहुत अच्छी लगती है।







अदिति गुप्ताः 
मुझे याद है बचपन मे मैं अपने भाई के साथ दीवाली मनाने के लिए कितनी बेसब्री से इंतजार करती थी क्योंकि इस दिन नए कपड़े, मिठाई तो मिलते ही थे, पूरा घर रंगोली और दियों से सजाया जाता था। अब तो दीवाली को ढंग से मनाए हुए एक लंबा समय गुजर गया है। अपने भाई से दूर होने के बाद पटाखे फोड़कर दीवाली मनाए कई साल हो गए हैं। शूटिंग की व्यस्तता और दूसरे कामों में व्यस्त रहने की वजह से भी किसी ौर काम के लिए समय ही नहीं बचता। ऐसे में अगर मुझे समय मिल जाए तो मैं त्यौहार जरुर मनाती हूँ। हालांकि मैं इस बार अपने परिवार के साथ पूजा में शामिल हो रही हूँ, और इस मौके पर नए कपड़े मिलने का मजा तो कुछ और है।



नीतिन मलकानीः 
इस त्यौहार की सबसे खास बात ये है कि ये प्रकाश का पर्व है और पूरा परिवार एक साथ मिलकर इसे मनाता है। इस मौके पर मेरा पूरा परिवार जिसमें हमारे चाचा और मामा सभी शामिल होते थे, हमारे घर आते थे और हम सब मिलकर दीवाली मनाते थे। हम सब मिलकर खूब पटाखे फोड़ते थे और मौज मस्ती में डूब जाते थे। इस मौके पर खूब मिठाईयाँ बनती थी और हम अपनी पसंद की मिठाईयों पर टूट पड़ते थे। इस मामले में तो हमारी शैतानी का कोई जवाब नहीं था!!





कृतिका सेंगर 
मेरे परिवार के लिए दीवाली हमेशा से ही एक महत्वपूर्ण त्यौहार रहा है। हमारे परिवार की परंपरा के अनुसार दीवाली पर हमारे सभी रिश्तेदार कानपुर में हमारे घर पर इकठ्ठे होते थे। परिवार के सभी लोगों का पूजा के हर दिनएक साथ उपस्थित रहना अपने आप में रोमांचक और मजेदार होता था। हिन्दू होने के नाते हमारे लिए इस मौके पर गृह प्रवेश भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। फिर भला मिठाई, प्रकाश और शाम को ताश खेलने को कौन भूल सकता है। दीवाली पर नए कपड़े पहनने को मिलते थे, भला उसे कौन भूल सकता है। ये पहला मौका होगा जब मैं दीवाली के मौके पर अपने परिवार से दूर रहूंगी।


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